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धर्मपथिक पूज्य गुरुवर श्री शैलेंद्र कृष्णजी द्वारा अपने गुरुवर के विषय में

श्री मारुति सेवा आश्रम, सतधारा बरमान घाट, नरसिंगपुर (मध्यप्रदेश) के संस्थापक ब्रम्हलीन सद्गुरु वीतराग तपोनिष्ठ श्री श्री 1008 स्वामी श्री मौनी महाराजजी का गुरुप्रदत्त नाम श्री दामोदरदासजी महाराज था । ये नाम स्वामीजी को उनके गुरुजी के द्वारा दीक्षा के समय प्राप्त हुआ । आपके गुरुदेव श्री श्री 1008 स्वामी श्री भगवानदासजी महाराज एक महान सादगी संपन्न, ब्रह्मनिष्ठ, ब्रह्मज्ञानी महापुरुष थे । दीक्षा के बाद ही स्वामीजी ने आजीवन मौन धारण करने का महान संकल्प ले लिया था । इसीलिए उनके जन्म एवं परिवार के विषय में किसीको कुछ भी ज्ञात नहीं है | उन्होंने अपने व्यक्तिगत जीवन एवं संबंधों के विषय में कभी किसीको कुछ नहीं बताया | स्वामीजी किसीसे बात नहीं करते थे, केवल खास मौके पर स्लेट पर लिखकर संवाद करते थे । स्वामीजी से संवाद का बस यही जरिया था । इसीलिये स्वामीजी को सभी भक्तजन मौनी महाराजजी के नाम से जानने एवं पूजने लगे । उनकी मौन साधना अंतिम समय तक निरंतर जारी रही, मेरा परम सौभाग्य रहा ऐसे सिद्ध एवं उच्च कोटि के पूज्य गुरुभगवान के श्री चरणों में सेवा करने का एवं बाल्यकाल से पूर्ण सानिध्य प्राप्त हुआ |

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स्वामीजी का अपरिग्रही स्वभाव

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स्वामीजी संग्रह में नहीं मानते थे | यही कारण था कि आगंतुक भक्त उनके चरणों में जो कुछ भी अर्पित करते स्वामीजी उन सभी चीज-वस्तुओं को लोगों में बाँट देते | अपने पास वे कुछ भी संग्रह करके नहीं रखते थे | उनका अपरिग्रही स्वभाव ही उनके विलक्षण उज्ज्वल आध्यात्मिक व्यक्तित्व का परिचायक है | स्वामीजी के जीवनकाल में उनके आश्रम में सदैव भंडारा चलता रहा | स्वामीजी ने कभी किसी भी भक्त से दान-दक्षिणा की अपेक्षा नहीं रखी | सभी को इस बात का आश्चर्य होता था कि बिना किसीसे दान-दक्षिणा लिए स्वामीजी कैसे भंडारे का आयोजन करते हैं ? कहाँ से इतने अनाज की व्यवस्था होती है ? यह स्वामीजी की आध्यात्मिक शक्तियों की ही महिमा थी कि उनके आश्रम में कोई कभी भी आ जाता, तो भी वह भूखा नहीं जाता था |

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अध्यात्म चेतना के धनी

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प्राणीमात्र के प्रति प्रेम ही स्वामीजी का मूल मंत्र था । आत्मीयता, स्नेह और श्रद्धा यही उनकी उपासना थी । स्वामीजी के अनुसार प्रेम और आत्मीयता के विस्तार का नाम ही अध्यात्म है । स्वामीजी ज्ञान में, भक्ति में पूर्णता को प्राप्त कर चुके थे । जीते जी मुक्ति का अनुभव प्राप्त कर चुके थे । सूखा पत्ता जैसे पेड़ से गिर पड़ता है, लेकिन इससे पेड़ को शोक नहीं होता, ठीक उसी तरह वे आत्मा में प्रतिष्ठित हो चुके थे | इसलिए शरीर की पीड़ा कभी उनको अपनी पीड़ा लगी ही नहीं । वे सुख-दु:ख, हर्ष-शोक से पार स्थितप्रज्ञ हो चुके थे !

सिद्ध संत श्री मौनी महाराजजी हुए ब्रह्मलीन...

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90 वर्ष की उम्र में श्री मारुति सेवा आश्रम, सतधारा बरमान घाट, नरसिंगपुर (मध्यप्रदेश) के संस्थापक वीतराग तपोनिष्ठ श्री श्री 1008 स्वामी श्री मौनी महाराजजी 10 अप्रैल 2021 को अपने पार्थिव शरीर को त्यागकर सदैव के लिये ब्रह्म में लीन हो गए, पर शरीर के देहाध्यास का त्याग तो उन्होंने बहुत पहले ही कर दिया था ! स्वामीजी ने परमात्म चेतना को समर्पित होकर ईश्वरीय दैवीकार्यों को आगे बढ़ाने में योगदान दिया । उन्होंने अपना जीवन सफल व सार्थक बनाया इसमें संदेह नहीं है । वे एक महापुरुष थे ! ऐसी आत्माओं का इस धरा पर बार-बार अवतरण हो, ऐसी हम कामना करते हैं ! उनकी स्मृति, उनकी आत्मीयता, उनका प्राणिमात्र के प्रति जो स्नेह था, उसे हम जीवनभर भूल नहीं सकते !

स्वामीजी ने अपने जीवनकाल में 100 यज्ञ किये और उन सभी का फल विश्व कल्याण एवं विश्व शांति हेतु समर्पित किया । मौनी बाबाजी शरीर से हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनकी मौन तपस्या, उनकी ज्ञान निष्ठा, उनका उदार व्यवहार, उनका परोपकारी, मिलनसार, सेवाभावी स्वभाव जैसे कई सद्गुण हमें उनकी स्मृति दिलाते रहेंगे एवं आनेवाली पीढ़ियों को प्रेरित व मार्गदर्शित करते रहेंगे ।

आपका जीवन पर्यंत ऋणी
– धर्म पथिक शैलेन्द्र कृष्ण