श्रीमद भागवत ज्ञान यज्ञ
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धर्मपथिक पूज्य गुरुवर श्री शैलेंद्र कृष्णजी श्रीमद् भागवत का महत्त्व समझाते हुए कहते हैं – “श्रीमद भागवत के एक- एक अक्षर में वेद का सार है । भागवत की महिमा अपरंपार है । शुकदेवजी ने तो यहाँ तक कहा है कि समस्त वेदों की उपासना, तप, जप एवं अनुष्ठान इस ज्ञान यज्ञ के सोलहवें हिस्से की भी बराबरी नहीं कर सकते हैं ।
भागवत की सबसे बड़ी महिमा तो यह है कि वह अशांत जीवन को शांत बना देता है । इस घोर कलियुग में मनुष्य बहुत ज्यादा तनाव में और अशांति में जी रहा है । संसार में सब आनंद ही चाहते हैं, लेकिन आनंद किसीको नहीं मिल पा रहा क्योंकि आनंद को ढूँढने का रास्ता गलत है । भौतिक साधन,भौतिक उपलब्धियाँ और धन आदि पाने के बाद भी मनुष्य अशांत है, क्योंकि मनुष्य का मन शांति के धाम भगवान में नहीं लगता । जब तक दिल में अध्यात्म का प्रकाश नहीं होगा, तब तक माया के आधीन रहकर जीव अशांत रहेगा ।
जब जीव भागवत रस को पी लेगा तो ह्रदय से सब विकार खुद बाहर चले जायेंगे और ह्रदय शुद्ध हो जाएगा । फिर भक्ति का दीपक जागृत हो जाएगा । भागवत की यही महिमा है कि भागवत ह्रदय को शुद्ध करके ह्रदय में आनंद प्रदान करता है । भागवत में चार शब्द हैं – भ,ग,व,त । “भ” अर्थात् भक्ति, “ग” अर्थात् ज्ञान और “व” अर्थात् वैराग्य । भागवत का प्रेमपुर्वक श्रवण करने से भक्ति, ज्ञान और वैराग्य, ये तीनों ही जीवन में आ जाते हैं और जब ये तीनों ही जीवन में आ गये तो “त” अर्थात् तरना, उसका जीवन तो विकारों से पार हो जाता है, ह्रदय शुद्ध हो जाता है और वह माया से तर जाता है । भागवत में और भगवान में कोई अंतर नहीं है ।”
अतः मनुष्य को तनाव और अशांति से छुटकारा दिलाने एवं भगवत आनंद प्रदान करने हेतु पूज्य गुरुवर भारत के विभिन्न राज्यों एवं शहरों में घूमकर श्रीमद् भागवत के प्रेमरस का जन-जन को पान कराते हैं | शास्त्रों के ज्ञान के मोती लुटाकर लोगों को भगवान की महिमा का रसास्वादन करवाते हैं । जीवन में ज्ञान, भक्ति और वैराग्य की महिमा बताकर लोगों को तनावमुक्त, चिंतामुक्त, प्रसन्न एवं आनंदित जीवन जीने की कला सिखाते हैं |