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धर्मपथिक पूज्य गुरुवर श्री शैलेंद्र कृष्णजी के लोकोपकारी जीवन की कुछ संक्षिप्त जानकारी

ब्राम्हण कुलभूषण धर्म पथिक पूज्य श्री शैलेन्द्र कृष्णजी का जन्म 8 अगस्त 1986 को माँ नर्मदा क्षेत्र एवं बुन्देलखंड की पुण्यवती धरा के मध्य सागर जिले (मध्य प्रदेश) में स्थित खेजरा गाँव, में हुआ | आपश्री की माता का नाम श्रीमती पुष्पवती (पुष्पा) पाण्डेय एवं पिता का नाम श्री रमेश कुमारजी पाण्डेय है |

वृन्दावन में आध्यात्मिक यात्रा


धर्म पथिक पूज्य गुरुवर श्री शैलेन्द्र कृष्णजी के माता-पिता पूर्व से ही ब्रह्मलीन संत श्री मौनीजी महाराज के परम भक्त एवं शिष्य रहे | श्री मौनीजी महाराज के प्रति अनन्य श्रद्धा एवं भक्ति को फलीभूत करने हेतु श्री मौनीजी महाराज ने पूज्य गुरुवर को ५ वर्ष की उम्र में ही उनके माता-पिता से ले लिया एवं उनके माता-पिता ने भी स्वेच्छा से गुरुआज्ञा को शिरोधार्य करके अपने ५ वर्ष के नन्हें से बालक को गुरु चरणों में अर्पित कर दिया | श्री मौनीजी महाराज ने ५ वर्ष की नन्हीं-सी उम्र से ही पूज्य गुरुवर की आध्यात्मिक मार्ग पर घड़ाई करना शुरू किया एवं कठोर साधना, तपस्या व श्रीकृष्ण भक्ति से ओतप्रोत करके पूज्य गुरुवर को इस आध्यात्मिक मार्ग पर अग्रसर किया |

इस आध्यात्मिक यात्रा से लेकर धर्म यात्रा तक के सफर में उनके गुरुदेव ने उन्हें ५ वर्ष की उम्र से वृन्दावन में ही निवास कराया | धर्म यात्रा हेतु एवं सनातन संस्कृति के प्रचार-प्रसार हेतु उन्हें वृन्दावन में भागवत कथा व संस्कृत भाषा के अध्ययन हेतु प्रेरित किया | तब से पूज्य गुरुवर बचपन से ही वृन्दावन में निवास करने लगे | पूज्य गुरुवर ने बड़े सुचारू रूप से अपना अध्ययन संपन्न किया एवं आध्यात्मिक साधना व तपस्या पूर्ण कर सनातन धर्म के प्रचार-प्रसार का बेड़ा उठाया | गुरुदेव श्री मौनीजी महाराज की आज्ञा शिरोधार्य करके ११ साल की उम्र में पूज्य गुरुवर ने चित्रकूट में पहली भागवत कथा की |

पूज्य गुरुवर स्थाई रूप से वृन्दावन में ही सदैव निवास करते है | वर्तमान में “माँ धाम” के नाम से पूज्य गुरुवर ने छोटे-से आश्रम की स्थापना कीई है , जो धौरेरा गाँव, राधामोहन नगर, वृन्दावन, जिला – मथुरा (उ.प्र.) में स्थित है | वृन्दावन से ही उनके धर्म प्रचार का मुख्य कार्य हो रहा है | धर्म प्रचार हेतु बांके बिहारीजी के अनन्य प्रेम में तल्लीन रहकर संपूर्ण भारतवर्ष में भ्रमण कर पूज्य गुरुवर भागवत कथा का प्रचार-प्रसार करते हैं | बाल्यकाल से लेकर अब तक पूज्य गुरुवर ४५० से अधिक भागवत कथा कर चुके हैं | उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें सरकार द्वारा “राष्ट्रीय प्रवक्ता” का सम्मान भी प्राप्त हुआ है |

धर्मपथिक पूज्य श्री शैलेन्द्र कृष्णजी कथावाचक ही क्यों बने !

भागवत कथावाचक पूज्य श्री शैलेन्द्र कृष्णजी अपने कथावाचक बनने के पीछे का एकमेव कारण भगवान श्री बांके बिहारीजी और अपने पूज्य गुरुदेवजी की महती कृपा बताते हैं | पूज्य गुरुवर के परिवार में दूर-दूर तक के कुल, खानदान में २१ पीढ़ी के पहले तक कोई कथावाचक नहीं था और किसीने इस क्षेत्र में कोई पांडित्य कर्म नहीं किया था | पूज्य श्री शैलेन्द्र कृष्णजी के गुरुदेव ब्रम्हलीन परम पूज्य प्रातः स्मरणीय १००८ वितराग तपोनिष्ठ श्री मौनीजी महाराज जो माँ नर्मदाजी के सिद्ध संत कहलाते थे एवं उनका बरमान घाट, नरसिंहपुर में आश्रम है | पूज्य गुरुवर की उम्र मात्र पाँच वर्ष की थी, तब उन्हें श्री मौनीजी महाराज उनके माता-पिता से मांगकर ले गए थे |

पूज्य गुरुवर के माता-पिता के कठिन त्याग एवं स्वामी श्री मौनीजी महाराज की करुणा कृपा के फलस्वरूप पूज्य गुरुवर ने वेदों का अध्ययन श्री नर्मदा संस्कृत गुरुकुल, बरमान माँ नर्मदा तट पर किया | स्वामी श्री मौनीजी महाराज ने ही पूज्य गुरुवर को धर्म पथ का पथिक बनाया श्रीमद् भागवत का सच्चा उपासक बनाया, भगवान श्री बांके बिहारीजी का अनन्य भक्त बनाया, उन्हीं की आज्ञा को शिरोधार्य करके पूज्य गुरुवर इस धर्म के मार्ग पर अग्रसर हुए | जैसे-जैसे पूज्य गुरुवर बड़े होते गए, उन्हें लगने लगा कि यदि पूज्य स्वामीजी के श्रीचरणों में माता-पिता ने मेरा दान कर दिया है, तो उन्हें सद्गुरुदेव के संकल्प की पूर्ति अवश्य करनी चाहिए और शायद विधि का यही विधान होगा | इसी भाव एवं लक्ष्य को लेकर वे आगे बढ़ते गए और धर्म के मार्ग पर चलकर अपनी ओजस्वी, दिव्य, सुमधुर वाणी द्वारा भारतवर्ष में श्रीमद् भागवत कथा के माध्यम से धर्म का झंडा फहराने लगे | मानवमात्र को धर्म का पथिक बनाने के लिए सदैव तत्पर रहनेवाले पूज्य गुरुवर श्री शैलेन्द्र कृष्णजी के आज सम्पूर्ण भारतवर्ष में लाखों अनुयायी हैं, जो उन्हें अपने गुरु रूप में पूजते हैं |
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जीवन में पहली कथा का अनुभव

भारत में जिन राज्यों में हिंदी भाषा का प्रचलन अधिक है, उन सभी राज्यों में पूज्य गुरुवर श्री शैलेन्द्र कृष्णजी ने श्रीमद् भागवत कथा का लोगों को रसपान कराया है, धर्म का प्रचार किया है | पूज्य गुरुवर जब मात्र ११ वर्ष के थे, तब उनकी पहली कथा चित्रकूट (उ.प्र.) में आयोजित की गई थी | उन्हें इस बात का पता भी नहीं था कि उनकी कथा का आयोजन किया गया है | यह एक अद्भुत और अकल्पनीय घटना थी | मई – २००२ में जब पूज्य गुरुवर के हाथ में पैम्फ्लेट छपकर आया, तब उन्हें पता चला कि चित्रकूट में उनके २ सत्रीय भागवत कथा का आयोजन किया गया है | इसके पहले उन्होंने कभी कथा नहीं की थी |

जब उन्होंने पैम्फ्लेट देखा तो उनके रोंगटे खड़े हो गए, वे बड़ी दुविधा में पड़ गए कि मैंने माइक के सामने पहले कभी बोला भी नहीं है, कथा कैसे होगी ? वे सोचने लगे कि भगवानजी ये आप कैसी परीक्षा ले रहे हैं ? लेकिन फिर उन्हें समझ आ गया कि गुरु भगवानजी ही उन्हें इस क्षेत्र में लाए हैं और इस मंच पर भी वे ही विराजमान करा रहे हैं | जब वे विराजमान करा रहे हैं तो निश्चित रूप से उन्हीं की करुणा कृपा से मेरी वाणी में माँ सरस्वती विराजमान होकर कथा करवाएँगी | तत्पश्चात् पूज्य गुरुवर ने गुरु कृपा से, खूब भाव विभोर होकर, प्रेमानंद में डूबकर भगवान के गुणानुवाद को गाया, श्रीमद् भागवत के प्रेमरस का जन-जन को पान कराया, शास्त्रों के ज्ञान के मोती लुटाकर लोगों को भगवान की महिमा का रसास्वादन करवाया ।

सभी धर्म के लोग सुनते हैं कथा

समय आ गया है कि हम स्वयं जागें, अपना दृष्टिकोण बदलें और अपने विचारों को बदलकर सभी धर्मों के प्रति अपनी संवेदनशीलता का विस्तार करें । किसी एक धर्म को लेकर चलने से यह संभव नहीं है | पूज्य गुरुवर सर्वधर्म समन्वय में विश्वास रखते हैं | यही कारण है कि हिंदू लोग तो पूज्य गुरुवर की कथा श्रवण करते ही हैं, लेकिन मुसलमान भी दूर-दूर से उनकी कथा सुनने आते हैं | पूज्य गुरुवर का कहना है कि ‘धरती माता पर जो भी मनुष्य बनकर आये हैं, उनके अंदर मानवता होनी चाहिए, चाहे हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख हो या इसाई हो और मानवता का यह सद्गुण भागवत ज्ञान के श्रवण और मनन से ही संभव है | युग परिवर्तन के लिए जन-जन में मानवता के श्रेष्ठ संस्कारों का बीजारोपण करने हेतु पूज्य गुरुवर श्रीमद् भागवत की महिमा से लोगों को अवगत करा रहे हैं | पूज्य गुरुवर के अनुसार भागवत ज्ञान वो साधन है, जिसे आत्मसात् करने से निश्चित रूप से हमारे जीवन में मानवता का आविर्भाव होगा, फिर चाहे वो कोई भी धर्मवाले हों |

भजन के बिना भोजन व्यर्थ है

पूज्य गुरुवर का नियम है कि जिस दिन वे कथा नहीं करते, उस दिन वे भोजन भी नहीं करते, क्योंकि उन्हें भगवान से, कथा से इतना प्रेम हो गया है, इतनी श्रद्धा, इतनी आस्था हो गई है कि जिस दिन वे कथा नहीं बोलते, उस दिन उन्हें लगता है कि आज मैंने भगवान की कोई सेवा नहीं की, भगवान का भजन नहीं किया, तो मुझे भोजन करने का भी अधिकार नहीं | ‘भजन करो तो भोजन करो, भजन के बिना भोजन करना व्यर्थ है, बेकार है |’ केवल मंच पर बैठकर कथा सुनाने को ही वे कथा करना नहीं मानते | ठाकुरजी की कृपा से नित्य ही १-२ घंटे या ३-४-५ घंटे पूज्य गुरुवर बिना मंच के भी कथा सुनाते हैं | यदि किसी दिन उन्हें ये सुअवसर भी प्राप्त नहीं होता, तो उस दिन वे उपवास करते हैं, ऐसा उनका संकल्प है |

पूज्य गुरुवर के जीवन की अविस्मर्णीय ऐतिहासिक कथा

पूज्य गुरुवर ने मध्य प्रदेश, गुजरात, राजस्थान, पंजाब, दिल्ली, ओड़िसा, महाराष्ट्र जैसे अनेकों राज्यों में कथा की है और हर राज्य में उन्हें विभिन्न प्रकार की अनुभूति होती है, क्योंकि हर राज्य के भक्तों का कथा आयोजन करने का तरीका अलग होता है | इन सबके बावजूद एक घने जंगल में उनकी कथा का आयोजन किया गया था, जो उनके जीवन का इतिहास बन गया, जिसे वे कभी भूल नहीं सकते | यह जंगल मध्य प्रदेश के रायसेन जिले के अंतर्गत अब्दुल्लागंज और सलकनपुर के बीच में पड़ता है | रातापाड़ी अभ्यारण्य के जंगल में एक गोपनीय गुफा है, जिसके बारे में अधिकतर लोग नहीं जानते हैं | उस गुफा में बाघराज देवी माँ की मूर्ति का प्रादुर्भाव हुआ है | जब पूज्य गुरुवर वहाँ पर गए, तो उस गुफा में ५ साल तक देवी माँ को कथा सुनाने का संकल्प उनके मन में उठा |

भक्तों ने कहा कि यहाँ शेर, भालू, चीते रहते हैं, यहाँ पर शहर जैसी कोई सुविधा नहीं, बिजली, पानी और रहने की कोई व्यवस्था नहीं है, शहर यहाँ से २५ कि.मी. दूर है, यहाँ कथा कैसे होगी ? पूज्य गुरुवर ने कहा – ‘जो भी हो, भगवान ने संकल्प उठाया है, तो पूरा भी वो ही करेंगे |’ ३ साल तक लगातार उनके मन में प्लानिंग चलती रही, वे प्रार्थना करते रहे कि – ‘प्रभु आप ही अब यह संकल्प पूरा करवाना |’
तत्पश्चात् कुछ आदिवासी भक्तों एवं भागवत गौ सेवा समिति के भक्तों ने ३ साल में एक रूपरेखा तैयार की, पेड़ों को काटकर गाड़ियों के आने-जाने का रास्ता तैयार किया और कथा कि सारी व्यवस्थाएँ की गई | इस प्रकार भागवत गौ सेवा समिति एवं श्री बाघराज मैया सेवा समिति के तत्त्वावधान में उस जंगल में माता रानी की कृपा से ५००० से अधिक लोगों ने वहाँ पहली बार श्रीमद् भागवत कथा का श्रवण किया | दूसरे वर्ष उसी जंगल में नर्मदा महापुराण की कथा का सफल आयोजन हुआ | तीसरे वर्ष उस घनघोर जंगल में श्रीराम भगवान की कथा का आयोजन किया गया | चौथे वर्ष श्रीमद् शिव महापुराण की कथा का सभी को रसास्वादन कराया गया और पाँचवे वर्ष श्रीमद् देवी भागवत महापुराण की कथा का रसपान कराया गया | इस प्रकार देवी माँ की कृपा से पूज्य गुरुवर का ५ साल का संकल्प निर्विघ्नतापूर्वक संपन्न हुआ | बाघराज देवी माँ को ५ वर्ष तक कथा श्रवण कराने से पूज्य गुरुवर को जो आनंद और शांति की अनुभूति हुई, वह उनके लिए अविस्मर्णीय है | ये कथा उनके जीवन का इतिहास बन गई |

युवा पीढ़ी के लिए संदेश

स्वयं युवा होने के कारण पूज्य गुरुवर वर्तमान युवा पीढ़ी की समस्याओं से, कष्टों से भलीभाँती परिचित हैं | आज की युवा पीढ़ी के लिए पूज्य गुरुवर का शुभ संदेश उन्हीं के शब्दों में प्रस्तुत है – “भगवान की कथा से जुड़े रहो, क्योंकि आज की युवा पीढ़ी भटक रही है और भटकते– भटकते वो पतन के मार्ग पर जा रही है | भागवत के विषय में मैं हमेशा एक बात कहता हूँ कि ‘Bhagwat Is The Biggest Collection Of Positive Thinking.’ श्रीमद् भागवत कथा सकारात्मक सोच का एक बहुत बड़ा गंगासागर है | आज के नौजवानों की सोच बिगड़ गई है, शिक्षा बिगड़ गई है, परिवेश बिगड़ रहा है, उनके बोलचाल की भाषा बिगड़ गई है, उनका पहनावा बिगड़ गया है, उनकी सभ्यता बिगड़ रही है, उनका चरित्र भी बिगड़ रहा है | ये नौजवान अगर भागवत की कथा सुनेंगे, उसे जीवन में आत्मसात् करेंगे तो इमानदार बनेंगे, शुद्ध सभ्यतावाले बनेंगे, शुद्ध शिक्षावाले और चरित्रवान बनेंगे | उनकी अंतरात्मा उनको बोलेगी कि – हाँ हमें स्वामी विवेकानंद बनना चाहिए | हमें स्वामी रामकृष्ण परमहंस जैसे आदर्शवादी बनना चाहिए | हमें सुभाष चंद्र बोस और खुदीराम बोस जैसे विलक्षण बनना चाहिए | ये सब बनने की लालसा तभी उत्पन्न होगी जब इन कथाओं को सुनेंगे, क्योंकि इन्हीं कथाओं में स्वामी विवेकानंद, स्वामी रामतीर्थ, सुभाष चंद्र बोस आदि के चरित्र बताये जाते हैं |
आज के नौजवान मोबाइल इंटरनेट के इतने आदि हो चुके हैं, कि वे अपने माता-पिता को भी समय नहीं दे पाते हैं, ये बहुत पीड़ादायक बात है | तो मैं अपने नौजवान साथियों से एक प्रार्थना करता हूँ कि इस आधुनिक युग की सभ्यता से थोड़ा बचकर धर्म से जुड़े रहो | यदि धर्म से जुड़े रहोगे तो तुम्हारा लक्ष्य तुमसे दूर नहीं जायेगा, तुम्हारी मंजिल तुमसे दूर नहीं जायेगी | धर्म से हटे, तो हम चरित्रहीन हो गए | इसलिए धर्म से जुड़े रहोगे तो चरित्रवान बनोगे, चरित्रवान बनना ये हमारे जीवन का मुख्य लक्ष्य होना चाहिये | चरित्रवान बनो | उठो, जागो और अनवरत अच्छे मार्ग पर दौड़ लगाओ, जहाँ तुम्हें अच्छी सोच मिले, अच्छे संस्कार मिले, अच्छी सभ्यता मिले, उस मार्ग का अनुसरण करते रहो | ये ही नौजवानों को मेरा संदेश है |”

सद्गुरु कृपा की महिमा

अपने सद्गुरु की महिमा का वर्णन करते हुए पूज्य गुरुवर उनकी स्मृतियों में खो जाते हैं और बताते हैं कि – “आज मैं जो कुछ भी हूँ, यहाँ मेरा कुछ नहीं है, ना मेरी कोई औकात है, ना मेरी कोई हैसियत है | मेरी औकात भी मेरे पूज्य गुरुदेव भगवान हैं और मेरी हैसियत भी मेरे पूज्य गुरुदेव भगवान हैं | इस मंच पर जो मैं बैठा हुआ हूँ, केवल एक कठपुतली हूँ और मुझे नचानेवाले, मुझे चलानेवाले, मुझे आगे बढ़ानेवाले कुछ भी हो, वो मेरे पूज्य गुरुदेव भगवान हैं | अति बाल्यकाल की उम्र से आपने ही मुझे पाला, पालकर मुझे बड़ा किया और इस लायक मुझे बनाया कि व्यास गद्दी पर बैठकर आप सबको कथा सुना सकूँ | तो कोई भी मेरे लिये ताली बजाता है, उन तालियों को मैं पूज्य गुरुदेव भगवान को अर्पण कर देता हूँ |

मेरे पास ऐसी कोई विद्या नहीं है, मेरे पास ऐसी कोई तपस्या नहीं है, मेरे पास ऐसा कोई ज्ञान का भंडार नहीं है, लेकिन फिर भी मेरे भक्तों को मेरी वाणी से कथा अच्छी लगती है, उस कथा का अच्छी लगने में मेरे पूज्य गुरुदेव भगवान की तपस्या शामिल है, उनका त्याग शामिल है, उनका परिश्रम शामिल है, उनका भजन शामिल है, उनका आशीर्वाद शामिल है | तो साथियों ये जो नर्मदा पुराण की कथा मैं बोल रहा हूँ, यदि मैं बचपन में स्वामीजी के चरणों में नहीं रहा होता, बचपन में मैंने स्वामीजी की डांट, स्वामीजी की मार नहीं खाई होती, तो आज ये सब संभव नहीं हो पाता | बचपन में स्वामीजी मुझे डंडे मार-मार के नर्मदाजी में स्नान करने भेजते थे, मुझे ठंडी लगती थी, लेकिन स्वामीजी फिर भी जबरदस्ती भेजते थे और मुझे मैया नर्मदाजी का जल पिलाते थे | ये सब वो ही कृपा है कि आज मैं नर्मदा पुराण की कथा आपको सुनाने में सक्षम हुआ हूँ |

संत डांटे, संत फटकार लगावें, संत प्रेम करें, संत धुत्कारकर भगा देवें, संत पुचकार के पास में बुला लेवें, तो समझना चाहिए कि प्रत्येक संत की लीला में कोई न कोई अच्छा भविष्य छुपा हुआ होता है | संत की आज्ञा का कभी तिरस्कार मत करो, संत की आज्ञा का कभी अनादर मत करो, संत की आज्ञा को कभी धुत्कारो मत, संत भगवान ने जो भी आज्ञा दी है, उसको हँसते-हँसते स्वीकार करो और गुरु- संत की आज्ञा पर चलना प्रारंभ करो | मैंने नर्मदा पुराण को विस्तार से नहीं पढ़ा है, लेकिन आपको इतना विस्तार से सुनाता हूँ, ये केवल और केवल, मेरे पूज्य गुरुदेव भगवान की कृपा है |

गुरुदेव भगवान ने ७२ वर्ष मौन धारण किया, हम लोग तो एक साल तक भी मौन नहीं रह पाते | नवरात्रि आती है, कोई कहे कि ९ दिन मौन धारण करना है, तो पहले ९ दिन तक सोचते हैं कि करें कि ना करें ? रख पाउँगा कि नहीं रख पाउँगा ? कर पाउँगा कि नहीं कर पाउँगा ? लेकिन पूज्य गुरुदेव भगवान ९ दिनों से नहीं, ९ सालों से नहीं बल्कि ७२ वर्षों तक मौन धारण किये विराजमान रहे | ना किसीकी निंदा, ना किसीकी चुगली, ना किसीकी बुराई, इन आँखों से सबको देखते जाते | मैंने अपने जीवन में बाहर के समुद्र को २-४ बार ही देखा है, लेकिन वास्तविक समुद्र को यदि किसी रूप में मैंने देखा है, तो अपने पूज्य गुरुदेव भगवान के रूप में देखा है |

समुद्र की विशालता, समुद्र की गहराई, समुद्र की महानता और महिमा ये है कि समुद्र में कुछ भी डालते जाओ, समुद्र सबको स्वीकार करता जाता है | इसी प्रकार स्वामीजी का कोई सम्मान करता है, स्वामीजी उसको भी स्वीकार करते हैं | स्वामीजी का कोई सम्मान नहीं करता है, स्वामीजी उसका भी सम्मान करते हैं | स्वामीजी का यदि कोई पूजन करे, स्वामीजी उसको भी स्वीकार करते हैं, स्वामीजी का कोई पूजन न करे, स्वामीजी उसको भी स्वीकार करते हैं | स्वामीजी को कोई धन-दौलत देवे, स्वामीजी उसको भी स्वीकार करते हैं | और स्वामीजी को कोई धन-दौलत ना देवे, केवल प्रेम से दो शब्द बोलकर उनका सम्मान कर देवे, तो स्वामीजी अपनी तपस्या का बहुत सारा हिस्सा उसको जरुर दे देते हैं |

मैंने आज तक उनको कुछ नहीं दिया और ना मेरी औकात है, ना मेरी हैसियत है, ना मेरी ताकत है कि उनको कुछ दे पाउँ ! लेकिन उन्होंने मुझे क्या दिया है, ये जग जाहिर है | उन्होंने मुझे क्या दिया है, ये जगत प्रसिद्ध है | उन्होंने मुझे क्या दिया है, जो मुझसे जुड़े हैं, जो मुझे जानते हैं, जो मुझे समझते हैं, जो मेरे नजदीक रहते हैं, उन सबको पता है कि आज मेरा जो ज्ञान है, बोलने की ताकत है, दिन-रात परिश्रम करने का जो सामर्थ्य है, ये केवल और केवल पूज्य गुरुदेवजी की कृपा है |

मैं बहुत बचपन से, अति बाल्यकाल से स्वामीजी के पास रहा हूँ, तो मैंने हजारों नहीं लाखों संतों का दर्शन किया, क्योंकि स्वामीजी के पास तो बड़े-बड़े संत आते रहते थे | मैं सबको मानता हूँ, सबको पूजता हूँ, लेकिन मेरी अंतरात्मा की निष्ठा केवल और केवल स्वामीजी के चरणों के अलावा कहीं जाने को तैयार ही नहीं होती… कहीं जाने को तैयार नहीं होती | दरबार हजारों देखें हैं, पर ऐसा कहीं दरबार नहीं | बिना स्वार्थ के जो प्रेम करें, वो तो प्रातः स्मरणीय पूज्य गुरुदेव भगवान श्री मौनी महाराजजी का ही दरबार ऐसा होता है |”